सनातन धर्म से जुड़ने के लिए ये नियम हमेशा ध्यान रखें
सनातन धर्म यानि जो पूर्ण है, जो सदा से है, सदा के लिए है, पवित्र है, जिसका शाश्वत महत्व है और जो सबके लिए हितकर है। सनातन धर्म वह धर्म है जिस धर्म से सब धारण किया गया है। जैसे ईश्वर सत्य है, आत्मा सत्य है, वैसे ही सनातन भी सत्य है और इस सत्य के मार्ग पर ले जाने वाला धर्म ही सनातन धर्म है। महंत श्री पारस भाई जी सनातन धर्म के विषय पर बात करते हुए बताया कि इस धर्म को सनातन इसलिए कहा जाता है क्योंकि इस धर्म के नियम अटल हैं, प्राकृतिक हैं। यह धर्म कल भी था, आज भी है, और आने वाले समय में भी चमकता रहेगा।
इस धर्म को सनातन इसलिए कहा जाता है क्योंकि इस धर्म के नियम अटल हैं, प्राकृतिक हैं। यह धर्म कल भी था, आज भी है, और आने वाले समय में भी चमकता रहेगा।
सनातन धर्म के नियम ऐसे हैं जिन नियमों से आप खुद को नियमों के अधीन बंधा हुआ महसूस नहीं करोगे बल्कि इन नियमों को मानकर आपके जीवन में सकारात्मकता आयेगी। इन नियमों को करने से आप अपने दुखों को भूल जाओगे और ये नियम आपको सफलता की ओर अग्रसर करेंगे।
सनातम धर्म दुनिया का सबसे पहला धर्म है, जितनी उसमें अच्छाइयां पाई जाती हैं, किसी और धर्म में नहीं पाई जाती हैं। इसलिए सनातन धर्म से जुड़ने के लिए ये नियम हमेशा ध्यान रखें।
आस्तिक
ईश्वर और वेदों में आस्था रखने वाले को आस्तिक कहा जाता है। इसके अलावा माता-पिता और गुरु में विश्वास रखना आस्तिकता ही है। ईश्वर पर यदि हमें विश्वास होता है तो हमारी हर मुराद पूरी हो जाती है।
आस्तिकता से मन और मस्तिष्क पवित्र होता है। ऋषियों द्वारा पवित्र ग्रंथों, वेदों और वैदिक साहित्य की दिव्यता पर जो विश्वास करता है, वही सनातन धर्म को बनाए रखता है।
पूजापाठ और संध्यावंदन
सनातन धर्म से जुड़ने के लिए या सनातन धर्म को मानने वाले लोगों के लिए सबसे जरूरी क्रिया या नियम है पूजापाठ। क्योंकि हिंदू धर्म के लोगों के दिन की शुरुआत पूजापाठ के बिना शुरू नहीं होती है। इसके लिए स्नान के बाद मंदिर में भगवान का नाम लेना, पूजापाठ करना और उनका स्मरण करना जरुरी माना गया है। महंत श्री पारस भाई जी पूजापाठ के बारे में कहते हैं कि इसके कुछ नियम होते हैं जिनका पालन करने से घर में सुख-समृद्धि का वास होता है।
पूजापाठ के कुछ नियम होते हैं जिनका पालन करने से घर में सुख-समृद्धि का वास होता है। सनातन हिन्दू धर्म में ईश्वर के लिए संध्यावंदन करने का नियम भी है। संध्यावंदन में स्तुति या ध्यान किया जाता है। वह भी प्रात: या शाम को सूर्यास्त के तुरंत बाद। कुछ पलों के लिए ईश्वर का ध्यान करने से आपके अंदर शक्ति का संचार होता है।
दान-पुण्य
दान पुण्य को भी सनातन में महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। दान पुण्य करने से आपके मन में संतोष का भाव आता है। जिससे आपको जीवन में सुख की अनुभूति होती है। इस जीवन में आपके पास जो भी है वह सब ईश्वर का ही तो दिया हुआ है।
इसलिए आपके पास जो कुछ भी है उसमें से एक छोटा सा हिस्सा ही सही जरूर दान करें। इसे आप जरुरतमंद, चैरिटी, मंदिर, धार्मिक संस्थाओं, गरीबों आदि में दान दे सकते हैं। पारस परिवार चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा भी दान-पुण्य का महान कार्य समय-समय पर किया जाता है।
पश्चात्ताप
बुरे कर्मों के लिए जीवन में पश्चाताप होना जरूरी है। यदि आपके अंदर पश्चाताप की भावना नहीं है तो आपके मन से बुराईयां खत्म नहीं हो सकती हैं। इसलिए अपनी भूल के लिए माफ़ी मांगना और विनम्र बने रहना जरूरी है। पश्चाताप करने से तनाव से बचे रह सकते हैं। क्योंकि किसी के सामने खड़े होकर भूल को स्वीकारने से आप टेंशन फ्री हो जाते हैं।
व्रत का पालन
जीवन में आगे बढ़ने के लिए व्रतवान बनना जरूरी है। व्रत से आत्मविश्वास बढ़ता है। व्रत से एक ओर जहां शरीर स्वस्थ रहता है वही मन और बुद्धि भी पवित्र और बलवान बनते हैं। सनातन में धार्मिक परंपरा के प्रति निष्ठा, शाकाहार एवं ब्रह्मचर्य जैसे व्रतों का पालन करना बहुत जरुरी है। सनातन में मांस एवं नशीले पदार्थों का सेवन अवैध माना जाता है।
तप
तप की व्याख्या करते हुए महंत श्री पारस भाई जी ने कहा कि लगातार बिना रुके अभ्यास करना भी तप है। त्याग भी तप है और मन का संतुलन बनाना भी तप है। इन्द्रियों का संतुलन बनाए रखना ही तप है। लगातार बिना रुके अभ्यास करना भी तप है। त्याग भी तप है और मन का संतुलन बनाना भी तप है। तप करने से आप अपने दिमाग पर अपना कंट्रोल कर लेते हैं और जब आपका अपने दिमाग पर कंट्रोल हो जाता है तो कैसी भी स्थिति हो आप कभी हार नहीं सकते। सनातन में तप का भी काफी महत्व है।
जप
जब हमारे मन में कई विचार एक साथ आते हैं तो तब दिमाग थक जाता है। इस स्थिति में जप करने से आप अपने मन को शांत कर सकते हैं। अपने प्रभु का ध्यान करें, प्रार्थना करें या किसी मंत्र का जप करें। जप करने से मन की सफाई हो जाती है, तन और मन पवित्र हो जाता है।
कर्म
कर्म से ही भाग्य का निर्माण होता है। हर व्यक्ति अपने कर्मों से ही अपना भविष्य निर्धारित करता है। बिना कर्म किये आप जीवन में सफल नहीं हो सकते हैं। इसलिए सनातन धर्म, भाग्य से ज्यादा कर्म पर विश्वास रखता है।
यम और नियम
यम नियम को मानना हर सनातनी का कर्तव्य है-
यम का अर्थ - अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह
नियम का अर्थ - शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय और ईश्वर प्राणिधान
जिसका न प्रारंभ है और न अंत, वही सनातन धर्म है और यही सनातन धर्म का सत्य भी। सनातन धर्म वही है, जिसके पालन से मनुष्य और समाज का कल्याण हुआ है, कल्याण हो रहा है और आगे भी होता रहेगा। जो कार्य, विचार सबकी भलाई करे और जो भाव सबसे प्रेम करे, वही तो है सनातन धर्म। महंत श्री पारस भाई जी की नजरों में जो कार्य, विचार सबकी भलाई करे और जो भाव सबसे प्रेम करे, वही तो है सनातन धर्म।