ज्योतिष के अनुसार ग्रहों का खेल
महंत श्री पारस भाई जी के अनुसार भारतीय ज्योतिष सबसे अनोखा और सबसे अद्भुत है। भारतीय ज्योतिष सबसे अनोखा और सबसे अद्भुत है। ज्योतिष में ग्रहों का स्थान सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है और ग्रहों को वैदिक का आधार माना जाता है। दरअसल ग्रह वे खगोलीय पिंड होते हैं, जो पृथ्वी के साथ-साथ अंतरिक्ष में भी गतिमान हैं और ज्योतिष के आधार पर यह माना जाता है कि ये सभी खगोलीय पिंड इस सृष्टि और इस सृष्टि पर रहने वाले सभी जीवों पर अपना प्रभाव डालते हैं। महंत श्री पारस भाई जी ने आगे कहा कि ज्योतिष के अनुसार कुल नौ ग्रह होते हैं, जिन्हें नवग्रह कहा जाता है।हर ग्रह हमारे जीवन पर सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रकार से अपना प्रभाव डालते हैं। हिन्दू धर्म में ग्रहों के बारे में कहा गया है- ‘सम भवते सम ग्रह’ अर्थात जो आपको प्रभावित करता है उसे ग्रह कहा जाता है।
आपको बता दें कि वैदिक परंपरा में किसी भी व्यक्ति का नाम उसकी राशि के अनुसार ही रखा जाता है और राशि के बारे में जानकारी उस व्यक्ति की जन्म कुंडली से पता चलती है। फिर इस तरह उसकी जन्म कुंडली से ग्रह तथा नक्षत्र की स्थिति का पता किया जाता है। मुख्य रूप से ज्योतिषीय भविष्यवाणी के लिए ग्रहों की स्थिति और दशाओं का विशेष अध्ययन किया जाता है। ज्योतिष के अनुसार कुल नौ ग्रह होते हैं, जिन्हें नवग्रह कहा जाता है। सूर्य, चन्द्रमा, बुध, शुक्र, मंगल, गुरु, शनि, राहु और केतु। हर ग्रह का अपना स्वभाव और अपनी प्रकृति होती है। चलिए आज ज्योतिष में हर ग्रह का कितना बड़ा महत्व है, जानते हैं-
सूर्य
सूर्य सभी ग्रहों का मुखिया है और सूर्य को सबसे पुराना ग्रह माना जाता है। क्योंकि सूर्य हमारे जीवन का प्रतिनिधित्व करता है और सूर्य ऊर्जा का प्रतीक भी है। ज्योतिष में सूर्य को आत्मा का कारक माना जाता है। जब किसी भी व्यक्ति की कुंडली को देखा जाता है तो सबसे पहले सूर्य का स्थान देखा जाता है। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार सूर्य, अदिति और ऋषि कश्यप के पुत्र हैं। पारस परिवार के मुखिया महंत श्री पारस भाई जी ने सूर्य ग्रह के बारे में कहा कि सूर्य हर व्यक्ति के सामर्थ्य और सौभाग्य को बढ़ाता है। ज्योतिष में सूर्य को सफलता का कारक कहा जाता है। सूर्य आत्मविश्वास, आत्मा, स्वास्थ्य, पिता, जीवन शक्ति, सत्ता, शोहरत, रचनात्मकता, नाम, ताकत, साहस और प्रतिष्ठा का प्रतीक है। सूर्य हर व्यक्ति के सामर्थ्य और सौभाग्य को बढ़ाता है।
सूर्य आपको सही दिशा की ओर ले जाने में सहायता करता है। कुल मिलाकर सूर्य आपकी पर्सनालिटी को बढ़ाने में मुख्य भूमिका निभाता है। मतलब सूर्य अपने प्रभाव से व्यक्ति के अंदर नेतृत्व क्षमता का गुण विकसित करता है। सूर्य एक विशिष्ट व्यक्ति बनने में हमारी पूरी तरह मदद करता है। इसलिए सूर्य को ग्रहों का राजा भी कहा जाता है। सूर्य मानव जाति की विशालता का प्रतिनिधित्व करता है। सूर्य किसी भी व्यक्ति के ऊपर अपनी शक्ति या ऊर्जा किस तरह प्रकट करेगा यह सूर्य की स्थिति, उसके उस स्थान जिसमें वह बैठा है और इसके साथ ही अन्य ग्रहों पर पड़ने वाला उसका प्रभाव और सूर्य पर पड़ने वाला अन्य ग्रहों के प्रभाव पर निर्भर करता है। जिस व्यक्ति की कुंडली में सूर्य की स्थिति प्रबल यानि शुभ स्थिति होती है तो उस व्यक्ति को जीवन में काफी अच्छे परिणाम मिलते हैं। ज्योतिष में सूर्य, सिंह राशि का स्वामी माना गया है। मेष राशि में यह उच्च होता है, वहीं तुला राशि सूर्य की नीच राशि मानी जाती है।
मानव शरीर की बात करें तो मस्तिष्क के बीचों-बीच सूर्य का स्थान माना गया है। हम सब अपने लाइफ में यदि कुछ भी करना चाहते हैं या फिर हमारे मन में कोई इच्छा है तो उसकी दिशा और अन्य सभी चीज़ें सब सूर्य से ही निश्चित होता है। सूर्य की स्थिति हम पर अपना विशेष प्रभाव डालती है। किसी व्यक्ति की कुंडली में जिस भी स्थान में सूर्य बैठा होता है तो उससे पता चल जाता है कि वह व्यक्ति किस क्षेत्र में नाम कमाएगा। अगर सूर्य, कुंडली में सही स्थान पर हो तो यह उस व्यक्ति की जिन्दगी को बदल देता है, वहीं अगर सूर्य सही स्थान पर न हो तो उस व्यक्ति को सचेत रहने की आवश्यकता होती है।
सूर्य को प्रसन्न करने के लिए सूर्य की उपासना के साथ सूर्य को जल अर्पित किया जाता है। साथ ही ॐ भास्काराय नमः का जाप कर सकते हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार रविवार का दिन सूर्य को समर्पित है। सूर्य के अच्छे प्रभाव से जातक को जीवन में सरकारी नौकरी में उच्च पद, मानसम्मान और यश प्राप्त होता है। पाश्चात्य ज्योतिष में फलादेश के लिए सूर्य राशि को आधार माना जाता है।
चंद्रमा
नवग्रहों में चंद्रमा को भाव, मन, पोषण, रचनात्मकता, माता, धन, यात्रा, प्रतिक्रिया, संवेदनशीलता और जल का कारक माना गया है। यह आंतरिक जीवन की शक्ति को दर्शाता है और इसके साथ ही व्यक्ति के दूसरों के प्रति व्यवहार और भावनाओं को नियंत्रित करता है। चन्द्रमा व्यक्ति को उसके अवचेतन मन से जुड़ने में मदद करता है। वैदिक ज्योतिष में चंद्रमा जन्म के समय जिस राशि में स्थित होता है वह जातक की चंद्र राशि कहलाती है। हरिवंश पुराण के अनुसार चन्द्रमा को ऋषि अत्रि का पुत्र माना गया है जिसका पालन दस दिशाओं द्वारा किया गया। चंद्रमा मन का कारक ग्रह है और यह बहुत ही शांतचित्त है। महंत श्री पारस भाई जी के अनुसार चन्द्रमा एक शुभ ग्रह है और चंद्रमा के कुंडली में बलशाली होने पर व्यक्ति स्वभाव से मृदु, संवेदनशील और अपने आस-पास के लोगों से प्रेम करने वाला होता है। चन्द्रमा सौम्य और शीतल प्रकृति को धारण करता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार चन्द्रमा एक शुभ ग्रह है। चंद्रमा के कुंडली में बलशाली होने पर व्यक्ति स्वभाव से मृदु, संवेदनशील और अपने आस-पास के लोगों से प्रेम करने वाला होता है।
चंद्रमा राशियों में कर्क और नक्षत्रों में रोहिणी, हस्त और श्रवण नक्षत्र का स्वामी है। हिन्दू ज्योतिष में राशिफल के लिए चंद्र राशि को आधार माना जाता है। चन्द्रमा हर व्यक्ति के ऊपर एक विशेष प्रभाव छोड़ता है जो उस व्यक्ति के दिमाग में एक विशेष संवेदनशीलता पैदा कर देता है। चन्द्रमा को ही व्यक्ति के विकास, माँ बनने, मानसिक शांति, स्मृति आदि के लिए जिम्मेदार माना गया है। कुंडली में बैठा चन्द्रमा ही आपको यह बताता है कि व्यक्ति की भावनात्मक जरूरतें क्या हैं और यदि जिस व्यक्ति की जन्म कुण्डली में चंद्रमा शुभ स्थिति में बैठा हो तो उस व्यक्ति को अच्छे परिणाम प्राप्त होते हैं।
इसके प्रभाव से व्यक्ति मानसिक रूप से स्वस्थ्य रहता है और साथ ही उस व्यक्ति का मन ज्यादातर अच्छे कार्यों में ही लगता है। वहीं चंद्रमा के कमज़ोर होने पर आपको परेशानी, मानसिक तनाव आदि की समस्या हो सकती है। यदि चन्द्रमा सही स्थान पर न बैठा हो तो उस व्यक्ति को संबंधित क्षेत्र में सचेत रहना चाहिए।
किसी व्यक्ति की कुंडली से उसके चरित्र को देखते समय चंद्रमा की स्थिति महत्वपूर्ण हो जाती है दरअसल चंद्रमा व्यक्ति के मन तथा भावनाओं को नियंत्रित करते हैं। चंद्रमा सूर्य और बुध का मित्र है वहीं मंगल, शुक्र, वृहस्पति और शनि के लिए तटस्थ है। व्यक्ति की कल्पना शक्ति चंद्र ग्रह से ही संचालित होती है। कुंडली में जिस स्थान पर चन्द्रमा होता है वह बताता है कि व्यक्ति सुरक्षा पाने के लिए किस दिशा या क्षेत्र में काम करेगा। यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में चन्द्रमा कमजोर है तो उस व्यक्ति को उपाय हेतु भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए , इससे उस व्यक्ति को चंद्र देव का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
मंगल ग्रह
ज्योतिष में मंगल को अत्यंत तेज और शक्तिशाली ग्रह माना जाता है। इसी कारण से कुंडली में इसके शुभ और अशुभ योग आपकी जिंदगी कैसी होगी यह तय करते हैं। इसे एक आक्रामक ग्रह माना जाता है। मंगल ग्रह शक्ति का प्रतिनिधित्व करता है। ज्योतिष विज्ञान में मंगल को साहस, वीरता, शक्ति, पराक्रम, सेना, क्रोध, उत्तेजना आदि का कारक माना जाता है। साथ ही यह अलावा यह युद्ध, शत्रु, भूमि, अचल संपत्ति, पुलिस आदि का भी कारक होता है। महंत श्री पारस भाई जी के अनुसार व्यक्ति की कुंडली में मंगल की अच्छी दशा कामयाब बनाती है और इस ग्रह की बुरी दशा व्यक्ति से सब कुछ छीन भी लेती है। ज्योतिष के अनुसार व्यक्ति की कुंडली में मंगल की अच्छी दशा कामयाब बनाती है और इस ग्रह की बुरी दशा व्यक्ति से सब कुछ छीन भी लेती है। यानि मंगल के बहुत से शुभ और अशुभ योग होते हैं। यह व्यक्ति को सफल होने के लिए मजबूत इच्छाशक्ति और हौसला भी प्रदान करता है।
हिंदू मान्यताओं के अनुसार मंगल को भूमि पुत्र के रूप में माना जाता है। यानि उसे धरती माता का पुत्र माना जाता है। मिस्त्र के लोगों ने इसे हार्माकिस और यूनानियों ने इसे अरेस यानी युद्ध का देवता कहा है। हमारे पुराणों के अनुसार मनुष्य के नेत्रों में मंगल ग्रह का वास होता है। मंगल व्यक्ति को सकारात्मक ऊर्जा से भर देता है जिससे वह कई तरह की परेशानियों का सफलतापूर्वक सामना कर सके। मंगल की दो राशियां हैं, मेष और वृश्चिक। यह मकर में 28 डिग्री उच्च का है और कर्क में 28 डिग्री नीच का होता है। इसका मूलत्रिकोण राशि मेष है।
यह सूर्य, चन्द्रमा और बृहस्पति के लिए अनुकूल है और बुध और शुक्र के लिए प्रतिकूल और शनि के लिए तटस्थ है। मंगल हमारे द्वारा चुने गए कार्य और उसे करने के तरीके को भी दर्शाता है। यह ग्रह किस व्यक्ति पर कैसे अपनी ऊर्जा का प्रभाव कैसे छोड़ेगा यह उस व्यक्ति की कुंडली पर निर्भर करता है। मंगल की स्थिति आपको बताती है कि आप किस दिशा में सबसे ज्यादा गतिशील है और किस दिशा में आप उलझे हुए हैं।
जिस व्यक्ति का मंगल अच्छा होता है वह स्वभाव से निडर और साहसी व्यक्ति होगा और उसे युद्ध में विजय प्राप्त होगी। वहीं यदि किसी जातक की जन्म कुंडली में मंगल अशुभ स्थिति में है तो उस व्यक्ति या जातक को जीवन में नकारात्मक परिणाम मिलेंगे। इस स्थिति में आपको इस ग्रह से संबंधित क्षेत्र में सचेत रहने की जरूरत है। मजबूत मंगल आपको अच्छा परिणाम देता है जबकि एक कमजोर मंगल इसी में दोष का प्रतिनिधित्व करता है। मंगल के शुभ योग में भाग्य चमक उठता है और लक्ष्मी योग मंगल का शुभ योग है। यह योग इंसान को धनवान बनाता है।
किसी कुंडली में मंगल और राहु एक साथ हों तो अंगारक योग बनता है और यह यह योग बड़ी दुर्घटना का कारण बनता है। अंगारक योग से बचने के लिए मंगलवार का व्रत करना शुभ होता है और साथ ही भगवान भोलेनाथ के पुत्र कुमार कार्तिकेय की पूजा करें। मंगल का एक और अशुभ योग है मंगल दोष। यह दोष आपके रिश्तों को कमजोर बना देता है। इस योग में जन्म लेने वाले व्यक्ति को मांगलिक कहा जाता है। इसी मंगल दोष के कारण जातकों को वैवाहिक जीवन में समस्या का सामना करना पड़ता है और कुंडली में यह स्थिति विवाह संबंधों के लिए बहुत संवेदनशील मानी जाती है।
बुध
बुध ग्रह को ग्रहों का राजकुमार माना जाता है। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार बुध का जन्म चन्द्रमा और देवगुरु बृहस्पति की पत्नी तारा से हुआ। बुध व्यक्ति के ज्ञान को बढ़ाने वाला ग्रह है। यह ग्रह व्यक्ति को सोचने समझने में या किसी चीज की पहचान करने में और अपने विचार व्यक्त करने में मदद करता है। यह छोटा सा ग्रह है लेकिन तेज तर्रार ग्रह है। यह कन्या राशि में उच्च व मीन राशि में नीच के होते है। यह उत्तर दिशा का स्वामी है। सूर्य व शुक्र इसके मित्र हैं वहीं मंगल और चंद्रमा से शत्रुता रखता है। बृहस्पति और शनि इसके सम ग्रह हैं। जिन लोगों का बुध अच्छा होता है, वे संचार के क्षेत्र में सफल होते हैं। वहीं यदि जातक की कुण्डली मे बुध की स्थिति कमज़ोर होती है तो जातक को तर्कशक्ति, बुद्धि और संवाद में समस्या का सामना करना पड़ सकता है।
जानेमाने ज्योतिषी और महंत श्री पारस भाई जी ने कहा कि बुध ग्रह मस्तिष्क से संबंधित है। यह ज्ञान तथा बुद्धि देने वाला है जिससे हम एक सार्थक जीवन यापन करते हैं। मतलब वैदिक ज्योतिष में बुध को बुद्धि, गणित, तर्क, संचार और चतुरता का कारक माना गया है। कुंडली में बुध की सही स्थिति होने पर यह अपने से संबंधित घटकों के प्रभाव को बढ़ा देता है और सही स्थान पर न होने पर आपको संबंधित क्षेत्र में सचेत रहने की आवश्यकता है। बुध का स्थान ही दिखाता है कि व्यक्ति किस तरह से लोगों से संपर्क करता है और वह क्या बनना चाहता है। बुध ग्रह, जातक को किसी भी परिस्थिति में ढलने की कला देता है। बुध ग्रह मस्तिष्क से संबंधित है। यह ज्ञान तथा बुद्धि देने वाला है जिससे हम एक सार्थक जीवन यापन करते हैं। मतलब वैदिक ज्योतिष में बुध को बुद्धि, गणित, तर्क, संचार और चतुरता का कारक माना गया है।
बुध एक तटस्थ ग्रह है इसलिए यह जिस भी ग्रह की संगति में आता है उसी के अनुसार ही व्यक्ति को इसके परिणाम मिलते हैं। बुध किस जातक पर क्या प्रभाव छोड़ेगा यह सब उस व्यक्ति की कुंडली पर निर्भर करता है। जातक की कुंडली में जिस स्थान पर बुध होगा वो स्थान बतायेगा कि वह जातक या व्यक्ति अपने गुणों का किस तरह इस्तेमाल करेगा। बुध ग्रह अपने गुणों के साथ-साथ जिस ग्रह के साथ बैठता है उसके भी फल प्रदान करता है। बुध महादशा 17 वर्ष की होती है। बुध प्रभावित व्यक्ति हास्य प्रेमी होते हैं और मजाक करना पसंद करते हैं।
ज्योतिष में 27 नक्षत्रों में से बुध को आश्लेषा,ज्येष्ठा,रेवती नक्षत्र का स्वामित्व प्राप्त है। बुध सफल व्यापार करने की क्षमता प्रदान करते हैं। यदि बुध ग्रह अच्छा होगा तो जातक कई भाषाओं का ज्ञाता हो सकता है। यह आकर्षक व्यक्तित्व के धनी होते हैं और वाणिज्य और कारोबार में सफल होते हैं।
बुध ग्रह मनुष्य के हृदय में बसता है। ज्योतिष के अनुसार बुध ग्रह का प्रिय रंग हरा है। रोमन पौराणिक कथाओं के अनुसार बुध वाणिज्य, चोरी तथा यात्रा का देवता है। ग्रीक भाषा में इसे परमेश्वर का दूत कहा गया है। बुध हमारे नाड़ी तंत्र को भी नियंत्रित करता है और व्यक्ति को अतिसंवेदनशील बनाता है। बुध ग्रह के अच्छे फल के लिए दुर्गा सप्तशती का पाठ करें और गणेश जी की आराधना करें। बुध कमजोर होने पर बुध यंत्र का उपयोग करें। दान करने से आपको फायदा मिल सकता है। सप्ताह में बुधवार का दिन बुध को समर्पित है।
बृहस्पति
ज्योतिष में बृहस्पति को गुरु के नाम से भी जाना जाता है। बृहस्पति को महाऋषि अंगीरा का पुत्र माना जाता है। ज्योतिष में बृहस्पति ग्रह कुंडली में स्थित 12 भावों पर अलग-अलग तरह से प्रभाव डालता है और इन प्रभावों का असर हमारे जीवन पर पड़ता है। महंत श्री पारस भाई जी के अनुसार बृहस्पति को बहुत लाभदायी ग्रह माना जाता है। यानि जातकों को इसके शुभ फल प्राप्त होते हैं। सभी ग्रहों में गुरु बृहस्पति सबसे उच्च और बड़ा ग्रह माना गया है यही वजह है कि बृहस्पति ग्रह को देवगुरु भी कहते हैं।यह धनु और मीन राशि का स्वामी होता है और कर्क इसकी उच्च राशि है वहीं मकर इसकी नीच राशि मानी जाती है। ज्योतिष के अनुसार बृहस्पति को बहुत लाभदायी ग्रह माना जाता है। यानि जातकों को इसके शुभ फल प्राप्त होते हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सभी ग्रहों में गुरु बृहस्पति सबसे उच्च और बड़ा ग्रह माना गया है यही वजह है कि बृहस्पति ग्रह को देवगुरु भी कहते हैं।
संतान सुख, वैवाहिक जीवन सुखी, मान सम्मान और धन दौलत आदि के लिए देव गुरु बृहस्पति ग्रह का मजबूत होना सबसे जरूरी बताया जाता है। गुरु को शिक्षा, अध्यापक, धर्म, बड़े भाई, दान, परोपकार, संतान, धार्मिक कार्य, पवित्र स्थल, वृद्धि, धन और पुण्य आदि का कारक माना जाता है। बृहस्पति ग्रह को स्वतंत्रता, सहनशक्ति और खुशहाली का ग्रह माना जाता है। जिस भी जातक की कुंडली में गुरु की स्थिति मजबूत हो तो वह जातक ज्ञान के क्षेत्र में हमेशा आगे होता है और इसके साथ ही उस व्यक्ति को जीवन में संतान सुख की प्राप्ति होती है।
जिस व्यक्ति पर बृहस्पति ग्रह की कृपा होती है उस व्यक्ति के अंदर सात्विक गुणों का विकास होता है और वह व्यक्ति सदैव सत्य के रास्ते पर चलता है। बृहस्पति ग्रह को पीला रंग प्रिय है। कुंडली में यदि कोई भाव कमज़ोर है और उस पर गुरु की कृपा दृष्टि पड़ जाए तो वह भाव मजबूत हो जाता है। बृहस्पति ग्रह को किस्मत वालों के ग्रह के रूप में देखा जाता है। बृहस्पति ग्रह ही जीवन के धार्मिक पहलुओं, सफलता, खुशियों, सपनों, ज्ञान और योग्यता का प्रतीक है। ज्योतिष के अनुसार कुंडली में बृहस्पति की अच्छी स्थिति मनुष्य का भाग्य बदल देती है लेकिन यदि यह सही जगह न हो तो व्यक्ति को सतर्क रहने की जरूरत है।
शुक्र
वैदिक ज्योतिष में शुक्र एक बेहद महत्वपूर्ण ग्रह हैं जो कि सप्तम भाव यानी कि पत्नी के भाव के कारक होते हैं। शुक्र वृषभ और तुला राशि के स्वामी होते हैं। महंत श्री पारस भाई जी ने शुक्र ग्रह के बारे में बताया कि जिस व्यक्ति की कुंडली में शुक्र अच्छे होते हैं वह व्यक्ति जीवन में भौतिक और शारीरिक सुख-सुविधाओं का लाभ उठाता है। शुक्र ग्रह को सबसे चमकीले ग्रह के रूप में जाना जाता है। जिस व्यक्ति की कुंडली में शुक्र अच्छे होते हैं वह व्यक्ति जीवन में भौतिक और शारीरिक सुख-सुविधाओं का लाभ उठाता है। यदि व्यक्ति विवाहित है तो उसका वैवाहिक जीवन सुखी व्यतीत होता है। वहीं यदि शुक्र कुंडली में कमज़ोर हो तो जातक को विवाह में अशुभ परिणाम मिलते हैं। जिन जातकों की कुंडली में शुक्र ग्रह का प्रभाव सकारात्मक रहता है यानी शुक्र ग्रह मजबूत होते हैं वे व्यक्ति बहुत ही सुंदर और आकर्षक होते हैं।
शुक्र विवाह, सौन्दर्य, प्रेम, रोमांस, संगीत, काम वासना, भौतिक सुख-सुविधा, पति-पत्नी,कला, प्रेमिका, मनोरंजन, करिश्मा, सुविधा, आरामदायक चीज़ों, फ़ैशन, वैभव और ऐशोआराम आदि का कारक होता है।
यानि यह ग्रह आनंद, सामाजिक संबंधों, शादी और अन्य प्रकार की भागीदारी से संबंधित है। शुक्र हमें प्यार की कीमत और क्षमता का अहसास करवाता है। किसी व्यक्ति के जीवनसाथी के चुनाव पर भी शुक्र के स्थान का गहरा प्रभाव पड़ता है। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार शुक्राचार्य को ऋषि भृगु का पुत्र माना जाता है। वे राक्षसों के गुरु हैं। शुक्र ग्रह मीन राशि में उच्च हो होते हैं वहीं कन्या राशि में नीच के हो जाते हैं। मीन राशि द्वादश भाव की राशि होकर शैया सुख को दर्शाती है यही वजह है कि शुक्र वहां उच्च होकर जीवन में अच्छे परिणाम देते हैं। कन्या राशि छठे भाव मतलब प्रतिस्पर्धा के भाव की राशि है इसी कारण शुक्र वहां नीच होकर अच्छे परिणाम नहीं देते हैं।
यदि व्यक्ति को किसी कार्य में अचानक से लगातार सफलताएं मिलने लगे तो समझिए यह मजबूत शुक्र के संकेत हैं। शुक्र प्यार की ओर झुकाव का भी सूचक है। यह व्यक्तियों के प्रति हमारे आकर्षण और चुनाव को दर्शाता है। शुक्रवार का दिन इसे प्रिय है और इसका शुभ रंग सफेद है। कन्याओं की सेवा करने से शुक्र प्रसन्न होता है। अगर शुक्र पीड़ित हो या आपको अच्छे फल नहीं दे रहा है तो शुक्रवार के दिन श्री सूक्त का पाठ कर कन्याओं को रबड़ी का भोग दें और कन्याओं या शादीशुदा स्त्रियों की मदद करें। कमजोर शुक्र को मजबूत करने के लिए वृषभ और तुला राशि के जातकों को हीरा धारण करना चाहि