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सनातन धर्म की मान्यताएँ

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March 18, 2024, 3:40 pm
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Paras Parivaar Team

सनातन धर्म की मान्यताएँ

महंत श्री पारस भाई जी, पारस परिवार का कहना है कि “वैदिक सनातन संस्कृति” भारत की पहचान है। सनातन धर्म का नाम विश्व में ऊँचा करना ही “पारस परिवार” का कर्तव्य है। जय माता दी…

सनातन धर्म की मान्यताओं के पीछे छिपा है बड़ा विज्ञान। इसकी अपनी कई मान्यताएं और परंपराएं हैं। इसलिए सनातन धर्म को मानने वाले लोग कई परंपराओं और मान्यताओं को मानते हैं। वहीं कुछ लोग ऐसे भी हैं जो इन्हें अंधविश्वास मानते हैं। वे लोग इनके पीछे के कई वैज्ञानिक कारणों से अनभिज्ञ होते हैं। इसलिए इस लेख में आज हम आपको सनातन धर्म की मान्यताओं से जुड़ी हुई रोचक जानकारी देने जा रहे हैं।
 

दोनों हाथ जोड़कर प्रणाम करने की महान पंरपरा
 

सनातन परंपरा में एक दूसरे का अभिवादन करने के लिए हाथ की दोनों हथेलियों को जोड़कर प्रणाम किया जाता है। भारतीय संस्कृति में हाथ जोड़कर अभिवादन करने की यह परंपरा सदियों से चली आ रही है। जब हम दोनों हाथों को जोड़कर नमस्कार करते हैं, तो हमारे शरीर में एक चेतना आती है, जिस वजह से हमारी याददाश्त बढ़ती है। इसके अलावा किसी व्यक्ति को हाथ जोड़कर नमस्कार करने से सामने वाला व्यक्ति नमस्कार करने वाले को ज्यादा दिनों तक याद रख पाता है। 

इसका वैज्ञानिक तर्क देखें तो जब हम एक दूसरे को नमस्कार करते हैं तो उस समय सभी उंगलियां आपस में एक दूसरे के संपर्क में आती हैं जिस कारण उन पर दबाव पड़ता है और उंगलियों की नसों का संबंध शरीर के सभी प्रमुख अंगों से होता है। 

उंगलियों पर दबाव पड़ता है जिसका सीधा असर हमारी आंखों, कानों और दिमाग पर होता है। नमस्कार शब्द संस्कृत भाषा के नमस शब्द से लिया गया है, जिसका अर्थ है एक व्यक्ति की आत्मा का दूसरे व्यक्ति की आत्मा से आभार प्रकट करना। इसके अलावा शरीर में रक्त का प्रवाह भी सही होता है। इसलिए हाथ जोड़कर प्रणाम करने से व्यक्ति के मन में सकारात्मक विचार आते हैं और दूसरे व्यक्ति के प्रति भी सम्मान की भावना आती है।
 

माथे पर तिलक लगाने की परंपरा
 

भारतीय संस्कृति में तिलक लगाने की परंपरा बहुत पुरानी है। फिर वो चाहे महिला हो या पुरुष हर कोई माथे पर तिलक जरूर लगाता है। माना जाता है कि माथे पर तिलक लगाने से सकारात्मकता आती है और भगवान का आशीष मिलता है। क्योंकि यह हिन्दू संस्कृति का एक अभिन्न अंग है। देवी-देवताओं, योगियों, ब्राह्मणों और संतों के मस्तक पर तो हमेशा तिलक सुशोभित रहता है। महंत श्री पारस भाई जी कहते हैं कि चंदन का तिलक लगाने वाले का घर अन्न और धन से भरा रहता है। साथ ही उसका सौभाग्य भी बढ़ता है। इसके अलावा कुंडली के उग्र ग्रह शांत होते हैं। 

माथे पर तिलक लगाने से जीवन में यश बढ़ता है। भारतीय परंपरा के अनुसार तिलक लगाना सम्मान का सूचक भी माना जाता है। यदि वैज्ञानिक नजरिए से देखें तो दोनों आंखों के बीज में आज्ञा चक्र होता है और इस आज्ञा चक्र पर टीका लगाने से हमारी एकाग्रता बढ़ती है। माथे पर तिलक लगाते समय उंगली का जो दबाव माथे पर बनता है उससे नसों का रक्त संचार काबू में रहता है। महंत श्री पारस भाई जी ने बताया कि तिलक लगाने से मन में अच्छे विचार आते हैं और किसी भी काम को करने की क्षमता कई गुना अधिक बढ़ जाती है। साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि मस्तक पर नियमित रूप से तिलक लगाने से मन को शीतलता और शांति मिलती है।
 

सूर्य की पूजा का महत्व
 

वैदिक ज्योतिष में भगवान सूर्य की पूजा को महत्वपूर्ण स्थान मिला है। शास्त्रों में भी सूर्य की उपासना का विधान है और आदिकाल से ही सूर्य की पूजा की जाती है। क्योंकि सूर्य देव से ही तो ये पृथ्वी प्रकाशवान है। सूर्य के बिना तो अंधकार ही अंधकार है। 

सूर्य देव को नवग्रहों का राजा कहा गया है और पंचदेव में सूर्य देव का विशेष स्थान है। दरअसल भगवान सूर्य ही सिर्फ ऐसे देवता हैं, जो सबको प्रत्यक्ष रूप से दर्शन देते हैं। यही वजह है कि सूर्य देव की पूजा का फल जरूर प्राप्त होता है। शास्त्रों के अनुसार सूर्य को जल चढ़ाने से घर-परिवार में खुशहाली रहती है और समाज में मान-सम्मान मिलता है। 

सूर्य देव की पूजा करने से स्वास्थ्य लाभ भी प्राप्त होता है। सूर्य को जल अर्पित करना भी अच्छा माना जाता है। सूर्य को जल अर्पित करने के कई वैज्ञानिक कारण भी हैं। सूर्य देव की उपासना से कष्टों से मुक्ति मिलती है। दरअसल जब हम सूर्य को जल चढ़ाते हैं तो तब पानी से आने वाली सूर्य की किरणें, जब हमारी आंखों में पहुंचती हैं तो आंखों की रोशनी बढ़ती है और कई बीमारियां भी खत्म होती हैं। 

सुबह-सुबह की धूप भी हमारी त्वचा के लिए फायदेमंद होती है। सूर्य को जल देने से भाग्योदय होता है। महंत श्री पारस भाई जी के अनुसार सूर्य भगवान की पूजा करने से यश, सौभाग्य, सुख-समृद्धि और तेज की प्राप्ति होती है। प्रतिदिन सूर्य को जल चढ़ाने से सूर्य देव का प्रभाव शरीर में बढ़ता है और ऊर्जा में वृद्धि होती है। सूर्य देव की नियमित उपासना से समस्त कष्ट और रोग दूर होते हैं। 
 

चरण स्पर्श करना
 

मान्यताओं के अनुसार जब आप किसी के चरण स्पर्श करते हैं तो हृदय में समर्पण एवं विनम्रता का भाव जागृत होता है। इसके साथ ही चरण छूने वाला दूसरों को अपने आचरण से प्रभावित करता है। यह भी माना जाता है कि जब आप किसी के चरण स्पर्श करते हैं तो चरण स्पर्श से आप उस परमात्मा को प्रणाम करते हैं जो व्यक्ति के शरीर में आत्मा के रूप में होता है। इसके पीछे आध्यात्मिक एवं वैज्ञानिक दोनों कारण छुपे हुए हैं। भारतीय परंपरा में सदियों से चरण स्पर्श करने की परंपरा चली आ रही है। 

ऐसा माना जाता है कि मस्तिष्क से निकलने वाली ऊर्जा हमारे हाथों से सामने वाले के पैरों तक पहुँचती है और पैरों से होते हुए उसके हाथों तक पहुंचती है। वहीं आशीर्वाद देते समय जब कोई व्यक्ति चरण छूने वाले के सिर पर अपना हाथ रखता है, तो वही ऊर्जा हाथों से फिर से हमारे मस्तिष्क तक पहुंचती है। 

चरण छूने का मतलब है पूरी श्रद्धा के साथ किसी के आगे नतमस्तक होना। मान्यताओं के अनुसार चरण स्पर्श करने से विनम्रता आती है और मन को शांति मिलती है और किसी का चरण स्पर्श करने से अहंकार की भावना भी खत्म होती है।
 

व्रत रखने की परंपरा
 

हिन्दू धर्म में व्रत रखने की परंपरा बहुत पुरानी है और हिन्दू धर्म की परंपरा के अनुसार अनेक प्रकार के व्रत या उपवास रखे जाते हैं। व्रत रखने से तन और मन की शुद्धि होती है और सनातन धर्म के प्रति समर्पण की भावना जागृत होती है। वैज्ञानिक कारणों की बात करें तो व्रत रखने से पाचन क्रिया अच्छी रहती है और पाचन तंत्र को आराम मिलता है। साथ ही शरीर में उपस्थित विषैले पदार्थों को निकालने का अवसर मिल जाता है और स्वास्थ्य अच्छा बना रहता है। 

व्रत रखने से कैंसर, मधुमेह और हृदय संबंधी आदि कई बीमारियों की संभावना भी कम होती है। उपवास करने से श्वसन क्रिया अच्छे से अच्छे से होती है और फेफड़ों की रुकावटें खत्म हो जाती हैं। पहले योगी और ऋषि मुनि कई सालों तक व्रत रखते थे। माना जाता है कि उपवास जितना लंबा होगा, शरीर की ऊर्जा उतनी ही बढ़ेगी। व्रत रखने से फेफड़ों को भी आराम मिलता है और शरीर को भी फायदा मिलाता है। फेफड़ों के साथ साथ दिल को भी फायदा होता है और हानिकारक कोलेस्ट्रॉल में कमी आती है। उपवास के दिन सकारात्मक सोच का विकास होता है।
 

तुलसी के पौधे की पूजा करना


महंत श्री पारस भाई जी कहते हैं, तुलसी का पेड़ हर घर के आंगन की शोभा को बढ़ाता है। तुलसी के पौधे को दैवीय औषधि माना जाता है। हर घर में तुलसी का पौधा होना अनिवार्य है। माना जाता है कि तुलसी का पौधा घर में होने से पवित्रता बनी रहती है और देवी देवताओं की कृपा भी बनी रहती है। 

साथ ही माँ लक्ष्मी आपके अंग-संग रहती है। तुलसी का पेड़ होने से हमेशा घर में मां लक्ष्‍मी का वास होता है। प्राचीन काल से ही तुलसी के पौधे को विष्णु प्रिया के रूप में पूजा जाता है। हिंदू मान्‍यताओं के अनुसार वृंदा के रूप में तुलसी, भगवान विष्‍णु की परम भक्‍त थीं। 

धार्मिक महत्व के साथ-साथ इसके वैज्ञानिक महत्व भी हैं। तुलसी का सेवन करने से कई प्रकार के आयुर्वेदिक लाभ भी प्राप्त होते हैं। इससे तनाव दूर रहता है और शरीर में ऊर्जा बनी रहती है। तुलसी के पौधे में कई तरह की औषधीय गुण होते हैं इसलिए तुलसी घर में होने से और इसका सेवन करने से निरोगी बने रहते हैं। औषधीय गुण होने की वजह से इसे चमत्‍कारिक पौधा भी माना जाता है। 

तुलसी की पत्तियों के इस्तेमाल से कई बीमारियां दूर रहती हैं। तुलसी के संपर्क से हमारा इम्यून सिस्टम भी मजबूत होता है। तुलसी की पूजा करने से घर में सुख-समृद्धि आती है और साथ ही तुलसी वास्तु दोष भी दूर करती है। इसके अलावा घर में तुलसी का पौधा होने से घर में कलह नहीं होता है और घर में शांति बनी रहती है। तुलसी को प्रसन्‍न करने से आपको धन की भी प्राप्ति होती है।

 

महिलाओं द्वारा सिंदूर लगाना
 

हमारे हिंदू धर्म में शादी होने के बाद माथे पर सिंदूर लगाने की महान परंपरा है। सिंदूर सुहागिन महिलाओं का मुख्य श्रृंगार माना जाता है। हिंदू धर्म में सिंदूर को ‘सौभाग्य का प्रतीक’ माना जाता है। सनातन धर्म में सिंदूर महिलाओं के लिए बेहद पवित्र माना गया है। 

विवाहित महिलाओं के लिए सिंदूर सुहाग की मुख्य निशानी मानी जाती है। हिंदू धर्म में शादी तब पूर्ण मानी जाती है जब दूल्हा, दुल्हन की मांग सिंदूर से भरता है। मान्यता है कि सुहागिन महिलाओं द्वारा मांग में सिंदूर भरने से पति की आयु लंबी होती है और सुहाग हमेशा सलामत रहता है। महिलाओं में सिंदूर लगाने का चलन बहुत पहले समय से चला रहा है। 

विवाह के बाद सभी महिलाएं सिंदूर लगाती हैं। विज्ञान की दृष्टि से भी देखा जाये तो इसके फायदे अनेक हैं। महिलाओं का मस्तिष्क का ऊपरी भाग बहुत ही संवेदनशील और कोमल होता है और इसी स्थान में महिलाएं सिंदूर लगाती हैं। 

दरअसल सिंदूर में उपस्थित तत्व इस स्थान से शरीर में मौजूद विद्युत ऊर्जा को नियंत्रित करते हैं। सिंदूर में पारा धातु की अधिकता के कारण चेहरे पर जल्दी झुर्रियां नहीं पड़ती हैं और महिलाओं की बढ़ती उम्र भी

जल्दी नजर नहीं आती है। 

यानि यह सुहागिन औरतों के लिए सिर्फ श्रृंगार की दृष्टि से ही महत्वपूर्ण नहीं है बल्कि सिंदूर लगाने के स्वास्थ्य पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ते हैं। दरअसल यह शरीर का ब्लड प्रेशर नियंत्रित करता है। माना जाता है कि इससे मानसिक तनाव भी कम होता है।

“महंत श्री पारस भाई जी” के अनुसार सनातन संस्कृति प्रेम, समर्पण का भाव जगाने वाली संस्कृति है। सनातन धर्म की मान्यताएँ हमें संस्कारवान होना सिखाती हैं। इसलिए हम नई संस्कृति को तो अपनायें लेकिन अपने पुराने रीति रिवाज को कभी न छोड़ें। सनातन संस्कृति राग द्वेष से दूर है, यह लोक कल्याण की संस्कृति है।

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