देश के प्रसिद्ध 5 गुरुद्वारे, जो हैं सिखों की आस्था का प्रतीक
घूमने के शौकीन लोगों के बीच भारत के धार्मिक और ऐतिहासिक स्थल काफी मशहूर हैं। इन्हीं धार्मिक स्थलों में शुमार हैं देश के ये प्रसिद्ध गुरुद्वारे। यहां एक बार तो मत्था टेकने हर कोई जाना चाहता है। गुरुद्वारा जिसका अर्थ गुरु का द्वार है, ये सिक्खों के पवित्र भक्ति स्थल हैं जहाँ वे अपने धार्मिक अनुष्ठान भी करते हैं। गुरुद्वारे में ‘गुरू ग्रन्थ साहिब जी’ की पूजा होती है और मान्यता है कि गुरू मोक्षप्राप्ति का साधन होते हैं।
सिख गुरुद्वारों को गुरुद्वारा साहिब भी कहते हैं। महंत श्री पारस भाई जी कहते हैं कि गुरुद्वारों में सभी धर्मों के लोगों का स्वागत किया जाता है। इन गुरुद्वारों की गिनती केवल प्रसिद्धि में ही नहीं खूबसूरती में भी होती है। ये गुरुद्वारे अपनी खूबसूरती के लिए भी दुनिया भर में प्रसिद्ध हैं। आइये जानते हैं इन 5 प्रमुख गुरूद्वारे के बारे में जो बेहद सुंदर और सुप्रसिद्ध हैं।
गुरुद्वारा हरमिंदर साहिब (अमृतसर)
‘गुरुद्वारा हरमिंदर साहिब’ को बचाने के लिए महाराजा रणजीत सिंह जी ने गुरुद्वारे का ऊपरी हिस्सा सोने से ढक दिया था इसलिए इसे स्वर्ण मंदिर का नाम भी दिया गया है। स्वर्ण मंदिर पंजाब के अमृतसर शहर में स्थित है। पूरा स्वर्ण मंदिर सफेद संगमरमर से बना हुआ है और इसकी दीवारों पर सोने की पत्तियों से नक्काशी की गई है। इसमें एक संग्रहालय और सभागार है। गुरुद्वारे के चारों ओर दरवाजे हैं, जो चारों दिशाओं (पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण) में खुलते हैं।
श्री हरिमंदर साहिब सिख धर्मावलंबियों का सबसे पावन धार्मिक स्थल या सबसे प्रमुख गुरुद्वारा है जिसे स्वर्ण मन्दिर के अलावा दरबार साहिब भी कहा जाता है। महंत श्री पारस भाई जी ने बताया कि यह गुरुद्वारा शिल्प सौंदर्य की अनूठी मिसाल है। स्वर्ण मंदिर सरोवर में मानव निर्मित झील है, इस झील में श्रद्धालु स्नान करते हैं। यह सिख धर्म से जुड़ा प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है, लेकिन इसके नाम में मंदिर आता है।
यह अमृतसर शहर का सबसे बड़ा आकर्षण है। माना जाता है कि सिखों के पांचवें गुरु अर्जुन देव जी ने लाहौर के एक सूफी संत साईं मियां मीर जी से दिसंबर, 1588 में गुरुद्वारे की नींव रखवाई थी। इस गुरुद्वारे का नक्शा खुद गुरु अर्जुन देव जी ने तैयार किया था।
गुरुद्वारा बंगला साहिब, दिल्ली
यह गुरुद्वारा नई दिल्ली के बाबा खड़गसिंह मार्ग पर स्थित है। यह दिल्ली का मशहूर गुरुद्वारा है। इस गुरुद्वारे का निर्माण राजा जय सिंह ने करवाया था। सन् 1664 में गुरु हरकृष्ण देव जी के सम्मान में इसका निर्माण किया गया था। सिखों के आठवें गुरु हरकिशन सिंह के द्वारा यहां पर किए गए चमत्कारों की याद में यह गुरुद्वारा काफी प्रसिद्ध है। गुरुद्वारा बंगला साहिब में राजा जय सिंह ने एक छोटा-सा तालाब बनवाया था।
इसका पानी कई बीमारियों के इलाज में बहुत ही कारगर माना जाता है। महंत श्री पारस भाई जी इस गुरुद्वारे के प्रांगण में स्थित तालाब के पानी को अमृत के समान जीवनदायी और पवित्र मानते हैं। इसका पानी कई बीमारियों के इलाज में कारगर माना जाता है। यह गुरुद्वारा सिखों और हिन्दुओं दोनों के लिए यह एक पवित्र स्थान है। राजा जयसिंह ने सिखों के 8वें गुरु श्री हर किशन सिंह की मेहमान-नवाजी इसी बंगले में की थी। यहां गुंबद सोने का है। इस गुरुद्वारे में सिखों के इतिहास को दर्शाता एक म्यूजियम भी है।
गुरुद्वारा शीशगंज, दिल्ली
दिल्ली के चांदनी चौक में महान धार्मिक एवं ऐतिहासिक गुरुद्वारा शीशगंज स्थित है जहां हिन्दू-सिख एवं अन्य धर्मों के लोग समान आस्था से शीश नवाते हैं। यह गुरुद्वारा नौवें सिख गुरु तेग बहादुर की शहादत की याद में बनवाया गया था। दिल्ली का शीशगंज गुरुद्वारा एक योद्धा के अभूतपूर्व शौर्य की गवाही बयां करता है। बादशाह औरंगजेब ने सिखों के नौवें गुरु श्री गुरु तेग बहादुर के इस्लाम स्वीकार न करने पर उनकी हत्या करवा दी थी।
गुरु तेग बहादुर को इस्लाम स्वीकार करने के लिए मजबूर किया जाने लगा था। गुरू तेग बहादुर जी ने धर्म परिवर्तन की बजाय शहादत को चुना। उन्होंने अपने सर्वोच्च बलिदान से सभी के लिए धार्मिक स्वतंत्रता का बड़ा संदेश दिया। महंत श्री पारस भाई जी कहते हैं कि गुरु तेग बहादुर को “मानवता का रक्षक” यूँ ही नहीं कहा जाता है।
धर्म की रक्षा के लिए उन्होंने अपना सर धड़ से अलग करवा दिया था। दिल्ली के चांदनी चौक में लाल किले के पास जल्लाद जलालदीन ने तलवार से गुरु साहिब का शीश धड़ से अलग कर दिया। आज लाल किले के सामने उसी जगह पर गुरुद्वारा शीशगंज साहिब स्थित है, जो प्रसिद्ध गुरुद्वारा है।
पांवटा साहिब गुरुद्वारा, हिमाचल प्रदेश
हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले में स्थित इस गुरुद्वारे में श्री गुरु गोविंद सिंह जी ने जीवन के चार साल बिताए थे और दसवें ग्रंथ की रचना की थी। उन्हीं की याद में यहां गुरुद्वारा बनाया गया है। महंत श्री पारस भाई जी ने यहाँ की मान्यता के बारे में बताया कि जो भी व्यक्ति अपनी मुराद लेकर यहाँ पहुंचता है गुरु गोबिंद सिंह जी की कृपा से उसकी मुराद जल्द ही पूरी होती है।
गुरुद्वारा पांवटा साहिब के पास ही गुरुद्वारा श्री कवि दरबार साहिब है जहां हर साल कविता पाठ प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है। सिख तीर्थयात्री हर समय यहां आते रहते हैं और भक्ति गीत परिसर में गूंजते रहते हैं। तीर्थयात्री यहां आध्यात्मिक सांत्वना पाने के लिए आते हैं। पांवटा साहिब में कई पर्यटन स्थल के आकर्षण हैं और उनमें से अस्सान झील और सहस्त्रधारा लोकप्रिय हैं। हर वर्ष यहां हजारों पर्यटक आते हैं। आज भी यहां गुरू गोबिंद सिंह जी की कलम आदि सामान मौजूद हैं।
जिन्हें दर्शन के लिए म्यूजियम में रखा गया है। सिख समुदाय का हर व्यक्ति इस गुरुद्वारे में दर्शन की इच्छा जरूर रखता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार यहाँ पर शोर के साथ बहती यमुना नदी गुरु के अनुरोध पर शांति से बही जिससे वे पास बैठकर दसम् ग्रंथ लिख सके। ऐसा माना जाता है कि तब से नदी शांति से इस क्षेत्र में बहती है। गुरुद्वारे में श्री दस्तर स्थान मौजूद है जहां माना जाता कि वे पगड़ी बांधने की प्रतियोगिताओं में न्याय करते थे।
महंत श्री पारस भाई जी का कहना है कि गुरुद्वारा पांवटा साहिब सिख धर्म का एक पूजनीय तीर्थस्थल है। यह पवित्र मंदिर हमें यह भी बताता है कि सिख धर्म कैसे कायम है।
गुरुद्वारा श्री हेमकुंड साहिब, उत्तराखंड
गुरुद्वारा श्री हेमकुंड साहिब, उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित है और यह अपनी वास्तुकला के लिए जाना जाता है। यह गुरुद्वारा अपनी खूबसूरती के लिए भी फेमस है। यह गुरुद्वारा सिखों का पवित्र धार्मिक स्थल है। चारों तरफ से पहाड़ और बर्फ से ढकी चोटियों के बीच में बसा है हेमकुंड साहिब। इन चोटियों का रंग वायुमंडलीय स्थितियों के अनुसार अपने आप बदल जाता है।
ये चोटियाँ कभी बर्फ सी सफेद, कभी सुनहरे और लाल रंग की, तो कभी नीले रंग की दिखाई देती हैं। यहाँ की अनुपम छटा देखते ही बनती है। यह गुरुद्वारा समुद्र स्तर से लगभग 4000 मीटर की ऊंचाई पर है। यह अक्टूबर से लेकर अप्रैल तक बंद रहता है। हिमालय की हसीन वादियों में स्थित गुरुद्वारा हेमकुंड साहिब सिखों के सबसे पवित्र स्थानों में से एक माना जाता है। इसकी सुंदरता किसी का भी मन मोह सकती है।
सिखों के 10वें गुरु गोबिंद सिंह जी ने इस गुरुद्वारे का निर्माण किया था। यह उनकी तपोस्थली है। ऐसा माना जाता है कि यहां श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने बरसों महाकाल की आराधना की थी। इस कारण सिख धर्म के लोगों का इस जगह में अटूट आस्था और विश्वास है। गुरुद्वारे के पास ही एक पवित्र सरोवर है, इसे अमृत सरोवर या अमृत का तालाब कहा जाता है।