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छोटा चार धाम- जहाँ दर्शन मात्र से भक्तों की मनोकामनाएं होती हैं पूरी

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March 18, 2024, 3:47 pm
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Paras Parivaar Team

छोटा चार धाम- जहाँ दर्शन मात्र से भक्तों की मनोकामनाएं होती हैं पूरी

चारधाम यात्रा एक ऐसी तीर्थयात्रा है जो समृद्ध इतिहास, गहरी आध्यात्मिकता को समाहित करती है। यह चारधाम यात्रा आपको एक अलग ही तरह का सुकून देती है। उत्तराखंड जो चार छोटे धामों के लिए प्रसिद्ध है। यहां पर गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ जैसे तीर्थ स्थलों को छोटे चार धाम के नाम से भी जाना जाता है।

ऐसा माना जाता है कि यहां दर्शन मात्र से ही भक्तों की सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। तो आइये इस ब्लॉग में आज हम आपको इन्हीं चार धामों के बारे में बताते हैं कि क्यों है इनकी इतनी अधिक मान्यता और ये कहाँ स्थित हैं।
 

उत्तराखंड के चारधाम


चारधाम यात्रा एक बहुआयामी तीर्थयात्रा है जो लोगों को भक्ति की भावना से प्रेरित करती है और लोगों को सदमार्ग की ओर ले जाती है। उत्तराखंड राज्य में स्थित छोटा चारधाम या इसे चारधाम भी कहते हैं, यह हिन्दू धर्म के हिमालय पर्वतों में स्थित पवित्र तीर्थ स्थल हैं। यहाँ हर साल हजारों यात्री दर्शन के लिए पहुंचते हैं।

ये भारत के उत्तराखण्ड राज्य के उत्तरकाशी, रुद्रप्रयाग और चमोली जिलों में स्थित है। ये धाम हैं - और यमुनोत्री, गंगोत्री, बद्रीनाथ, केदारनाथ। आपको बता दें कि इनमें से बद्रीनाथ धाम, भारत के चार धामों का भी उत्तरी धाम है।
 

यमुनोत्री


यमुनोत्री मंदिर, देवी यमुना को समर्पित है, जिन्हें सूर्य देव की बेटी माना जाता है। मान्यताओं के अनुसार, यमुना मानवता के पापों को धोने के लिए स्वर्ग से अवतरित हुई थीं। मंदिर में देवी यमुना की एक पवित्र काले संगमरमर की मूर्ति है। यमुनोत्री में कई कुंड मौजूद हैं जिनमें गर्म पानी बहता है। गर्म पानी के इस कुंड में भक्त चावल को कपड़े में बांधकर पकाते हैं और प्रसाद के रूप में ही इसे ग्रहण करते हैं। हिमालय की गोद में बसा है यमुनोत्री धाम।

यही वह पवित्र स्थान है, जहां से यमुना नदी का उद्गम होता है। उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में स्थित यह स्थान अपने गर्म पानी के झरनों के लिए जाना जाता है। यहां माता रानी को आलू भी अर्पित किए जाते हैं। इस मंदिर का निर्माण टिहरी के राजा नरेश सुदर्शन शाह ने सन् 1839 में करवाया था। हर साल इस मंदिर को अक्षय तृतीया के दौरान खोला जाता है। दिवाली के दिन यहां पर विशेष पूजा की जाती है।

यमुना नदी का वास्तविक स्रोत कलिंद पर्वत के नीचे एक जमे हुए ग्लेशियर से है जिसे चंपासर ग्लेशियर कहा जाता है, जिसके कारण यमुना को कालिंदी भी कहा जाता है। क्योंकि यह 4421 मीटर की ऊंचाई पर कालिंद पर्वत पर स्तिथ है।

यमुनोत्री धाम में पिंड-दान का भी विशेष महत्व है। श्रद्धालु इस मंदिर के परिसर में अपने पितरो का पिंड-दान करने आते हैं। ऐसी मान्यता है कि एक बार भैया दूज के अवसर पर देवी यमुना ने अपने भाई यम से वरदान माँगा कि भैयादूज के दिन जो भी व्यक्ति यमुना में स्नान करे उसकी अकाल मृत्यु न हो। इस मंदिर में यम की पूजा का भी विधान है।

यदि आप यमुनोत्री जाना चाहते हैं तो हवाई सड़क या रेल मार्ग से यमुनोत्री पहुंचा जा सकता है। यहां का निकटतम हवाई अड्डा देहरादून का जॉली ग्रांट हवाई अड्डा है, जो यमुनोत्री शहर से 210 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। दिल्ली से देहरादून के लिए नियमित उड़ाने हैं। यहां से यमुनोत्री के लिए टैक्सी ले सकते हैं। यदि सड़क मार्ग की बात करें तो हनुमान चट्टी तक चलने वाली राज्य बसों द्वारा भी यमुनोत्री पहुंचा जा सकता है। यहां से यमुनोत्री 14 किमी दूर है।

महंत श्री पारस भाई जी का मानना है कि हिंदुओं की पवित्र और आध्यात्मिक यात्राओं में से एक है, उत्तराखंड की चार धाम यात्रा। इन सभी स्थलों को हिंदू धर्म में बेहद पवित्र और महत्वपूर्ण माना जाता है। इनमें यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बदरीनाथ मंदिरों के दर्शन शामिल हैं।
 

गंगोत्री


गंगोत्री धाम उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के राजसी गढ़वाल हिमालय में स्थित है जो समुद्र तल से लगभग 3,100 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। प्रसिद्ध तीर्थ गंगोत्री, राजा भगीरथ की कथा से जुड़ा है, जिन्होंने गंगा नदी को पृथ्वी पर लाने के लिए सदियों तक तपस्या की थी। ऐसा माना जाता है कि भगीरथ की तपस्या से प्रसन्न होकर ही गंगा स्वर्ग छोड़कर धरती पर अवतरित हुई थी जिसके कारण ही गंगा नदी को भगीरथी के नाम से भी जाना जाता है।

यह देवी गंगा को समर्पित सबसे ऊंचा मंदिर है। 18वीं शताब्दी में एक गोरखा कमांडर द्वारा बनवाया गया गंगोत्री मंदिर एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है। यह सुरम्य भागीरथी घाटी में स्थित है। यह पवित्र स्थान लोगों को इसकी अलौकिक सुंदरता को देखने और गंगोत्री के आकर्षक परिवेश में व्याप्त दिव्य आभा में डूबने के लिए आकर्षित करता है।

महंत श्री पारस भाई जी बताते हैं कि गंगोत्री हिंदू धर्म में सबसे अधिक महत्व प्राप्त नदी, गंगा का उद्गम स्थल है। गंगोत्री का गंगा जी मंदिर समुद्रतल से लगभग 3100 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह स्थान उत्तरकाशी से 100 किलोमीटर तथा ऋषिकेश से लगभग 248 किलोमीटर दूरी पर स्तिथ है। पवित्र नदी गंगा का उदगम गंगोत्री ग्लेशियर में स्थित गौमुख में है, जहाँ पर गंगोत्री से 19 किमी की पैदल यात्रा द्वारा पहुँचा जा सकता है। कहते हैं कि यहां के बर्फीले पानी में नहाने से सभी पापों से मुक्ति हो जाती हैं।

महंत श्री पारस भाई जी कहते हैं कि गंगा शुद्धता का प्रतीक है। यह सभी पापों को दूर करती है, यह एक देवी माँ के रुप में जानी जाती है, जो जीवन के जन्म से लेकर मृत्यु तक सभी पापों को दूर करती है। गंगोत्री, वह पवित्र स्थान जहां गंगा नदी कृपापूर्वक पृथ्वी पर अवतरित हुई थी, हिंदुओं के लिए अत्यधिक धार्मिक महत्व रखता है।
 

केदारनाथ


केदारनाथ का यह मंदिर उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है। भव्य हिमालय में बसा केदारनाथ मंदिर, भगवान शिव के भक्तों के लिए अत्यधिक धार्मिक महत्व रखता है। केदारनाथ अपनी लुभावनी प्राकृतिक सुंदरता से मंत्रमुग्ध कर देता है। बर्फ से ढकी चोटियाँ ऊँची खड़ी हैं, जो प्रकृति की भव्यता का प्रमाण है। वहीं हरे-भरे घास के मैदान फैले हुए हैं, जो आपकी थकान को पल भर में दूर कर देते हैं। केदारनाथ मंदिर को लेकर एक मान्यता यह भी है कि यहां भगवान शिव ने अपने बालों से पवित्र गंगा नदी के जल को यहां छोड़ा था।

यदि आप भी केदारनाथ मंदिर के दर्शन के लिए यहाँ जाना चाहते हैं तो अप्रैल से अक्टूबर के बीच ही यहां जाने के लिए प्लान बनाएं। क्योंकि इसके बाद अधिक बर्फ पड़ने के कारण इसे बंद कर दिया जाता है। दरअसल सर्दियों में भारी बर्फबारी के कारण यहां केवल गर्मियों के महीनों के दौरान ही पहुंचा जा सकता है। केदारनाथ मंदिर 3,583 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। भगवान शिव का निवास स्थान  है केदारनाथ।

ऐसा माना जाता है कि इस धाम का निर्माण आदिशंकराचार्य ने 8वीं शताब्दी में कराया था। यहां पहुंचने के लिए आपको 14 किलोमीटर का सफर पैदल चलना होगा  या हेलिकॉप्टर से भी यात्रा कर सकते हैं। केदारनाथ बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है और भगवान शिव को समर्पित, 'पंच केदार' में से एक। यहाँ के बारे में यह भी माना जाता है कि यह वह स्थान है जहां भगवान शिव ने कुरुक्षेत्र के युद्ध के बाद पांडवों से बचने के लिए एक बैल के रूप में शरण ली थी।
 

बद्रीनाथ 


बद्रीनाथ मंदिर एक प्रमुख धार्मिक स्थल और हिंदू मंदिर वास्तुकला का उत्कृष्ट नमूना है। यह जटिल नक्काशी से सुसज्जित है। बद्रीनाथ मंदिर समुद्र तल से 3,133 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। बद्रीनाथ मंदिर की मुख्य मूर्ति, ‘शालिग्राम’ शिला द्वारा निर्मित है। यह मंदिर चार धामों में से एक है और भारत के प्रमुख तीर्थ स्थलों में शामिल है।

भारत के उत्तराखंड राज्य के चमोली जिले में बद्रीनाथ धाम स्थित है, जिसे बद्रीनारायण के नाम से भी जाना जाता है। उत्तराखण्ड के चमोली जिले में नर तथा नारायण पर्वतों के मध्य बद्रीनाथ धाम,  पुराणों में सर्वश्रेष्ठ एंव चारो धामों में से एक प्रसिद्ध और पौराणिक धाम है। मान्यता है कि आदि युग में नारायण ने, त्रेतायुग में भगवान राम ने, द्वापर युग में वेदव्यास ने तथा कलयुग में आदि शंकराचार्य ने बद्रीनाथ में धर्म और संस्कृति के सूत्र पिरोए थे।

ऐसी मान्यता है कि भगवान विष्णु इस मंदिर में छह माह निद्रा में रहते हैं और 6 माह जागते हैं। यहां पर श्रद्धालु तप्तकुण्ड में स्नान करते हैं। बद्रीनाथ धाम में 6 महीने तक पूजा की विधान है। हर साल अप्रैल के आखिरी या मई में मंदिर के कपाट खोले जाते हैं जो कि नवंबर के दूसरे सप्ताह तक खुले रहते हैं। बद्रीनाथ की पूजा रावल के अतिरिक्त कोई और नहीं कर सकता है। ऐसा माना जाता है कि बद्रीनाथ धाम की स्थापना अदि गुरु शंकराचार्य ने की थी।

बद्रीनाथ मंदिर में विष्णु भगवान, नर नारायण आदि देवताओं की मूर्तियाँ हैं। मंदिर परिक्रमा में शंकराचार्य, लक्ष्मी जी का मंदिर तथा देवी-देवताओं की मूर्तियाँ हैं और तप्तकुण्ड के पास छोटा शिवालय भी है। बद्रीनाथ तीर्थ में स्नान करने से मनुष्य को स्वर्गलोक की प्राप्ति होती है। सर्दी के दिनों में पूरा बद्रीनाथ धाम बर्फ की चादरों से ढका रहता है।

हिमालय की गोद में अलकनंदा नदी के तट पर बसा हुआ यह हिंदू धर्म का एक प्राचीन मंदिर है, जो भगवान विष्णु को समर्पित है। यहां पर भगवान विष्णु के एक रूप बद्रीनारायण की पूजा होती है। महंत श्री पारस भाई जी ने बताया कि इस पावन धाम में अचल ज्ञान ज्योति के प्रतीक के रूप में अखंड दीप जलता है।

महंत श्री पारस भाई जी ने बताया कि यहाँ भगवान् विष्णु साक्षात् निवास करते हैं इसीलिए बद्रीनाथ को दूसरा वैकुण्ठ भी कहा जाता है।
 

उत्तराखंड की चार धाम यात्रा से जुड़ी कथा


महाभारत की एक कथा के अनुसार पांडवों ने जब स्वर्गलोग की यात्रा की तो उन्होंने अपनी यात्रा यमुनोत्री से ही शुरू की थी, इसके बाद वह गंगोत्री गए, फिर वह केदारनाथ होते हुए बद्रीनाथ धाम की ओर गए थे और बद्रीनाथ धाम की यात्रा के बाद वह स्वर्गारोहिणी ग्लेशियर पर गए।

मान्यता है कि इसी स्वर्गारोहिणी ग्लेशियर पर स्वर्ग जाने का रास्ता है और यहीं से धर्मराज युधिष्ठिर ने यम के साथ जो कि कुत्ते का वेष में थे, इंद्रदेव के विमान में शशरीर स्वर्गलोक को गये थे। ऐसा माना जाता है कि तभी से उत्तराखंड की यह चार धाम यात्रा की जाती है।

महंत श्री पारस भाई जी के अनुसार जो व्यक्ति इन चार धाम की यात्रा कर लेता है, उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
 

आध्यात्मिक विकास और परमात्मा के साथ जुड़ाव होगा महसूस


इस यात्रा पर तीर्थयात्री आध्यात्मिक विकास और परमात्मा के साथ जुड़ाव महसूस करते हैं। इसके अलावा हिमालय क्षेत्र की सांस्कृतिक और प्राकृतिक सुंदरता में तीर्थयात्री खो जाते हैं और यहाँ से वे अपने साथ एक अलग ही अनुभव ले कर जाते हैं। उत्तराखंड में स्थित ये छोटे चार धाम, यहां दर्शन मात्र से ही होता है भक्तों का बेड़ापार।
 

पवित्र स्थल जहां पृथ्‍वी और स्‍वर्ग होते हैं एकाकार


यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ हिंदुओं के सबसे पवित्र स्‍थान हैं। महंत श्री पारस भाई जी ने बताया कि जो पुण्‍यात्‍मा यहां का दर्शन कर लेती है, उनका न केवल इस जन्म का पाप धुल जाता है बल्कि वे जीवन-मरण के बंधन से भी मुक्‍त हो जाते हैं। उन्होंने आगे बताया कि इस स्‍थान के संबंध में यह भी कहा जाता है कि ये वो स्‍थल हैं जहां पृथ्‍वी और स्‍वर्ग एकाकार होते हैं।

उत्तराखंड की इस धरती को भारतीय संतों और महात्माओं ने देवताओं और प्रकृति का मिलन स्थान माना है। तीर्थयात्री इस यात्रा के दौरान सबसे पहले यमुनोत्री (यमुना) और गंगोत्री (गंगा) का दर्शन करते हैं। इसके बाद यहां से पवित्र जल लेकर श्रद्धालु केदारनाथ में जाकर जलाभिषेक करते हैं।

महंत श्री पारस भाई जी का मानना है कि हम सबको चार धाम की यह पवित्र यात्रा श्रद्धा, विश्वास और पर्यावरण के प्रति सम्मान के साथ करनी चाहिए।

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